How to Pay fixation in ACP 6th CPC

How to Pay fixation in ACP 6th CPC

How to Pay fixation in ACP 6th CPC – 6TH PAY COMMISSION में दिनांक 01-01-2006 से केंद्र और राज्य कर्मचारियों के लिए  assured career progression की संस्तुति की गई। इससे पूर्व समयमान वेतनमान की व्यवस्था लागू थी जिसे बदलकर राज्य कर्मचारियों के लिए एसीपी की यह व्यवस्था दिनांक 01-09-2008 से लागू की गई। इसके अंतर्गत किसी कार्मिक को यदि सम्पूर्ण सेवाकाल मे न्यूनतम तीन पदोन्नति प्राप्त नहीं हों तो उस कार्मिक को प्रथम एसीपी 10 वर्ष में, द्वितीय एसीपी 16 वर्ष में तथा तृतीय एसीपी 26 वर्ष में देय होगी। परंतु यह विशेष ध्यान दिया जाए कि इस लेख में केवल छठे वेतनमान के अनुसार एसीपी की व्यवस्था के विषय में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है।  इस प्रक्रिया के अनुसार उन्ही प्रकरणों पर कार्यवाही की जाएगी जो केवल दिनांक 31-12-2016 तक की अवधि के लिए होंगे।  उसके आगे के लिए सातवें वेतनमान के अनुसार एम0ए0सी0पी0 (MACP- Modified Assured Carrier Progression) लागू होगी, जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं।

एसीपी की कुछ मुख्य विशेषताएं- 
  1. किसी कार्मिक को यदि पूरे सेवाकाल में न्यूनतम 3 पदोन्नति प्राप्त नहीं होती हैं तो उस कार्मिक को प्रथम एसीपी 10 वर्ष में, द्वितीय एसीपी 16 वर्ष में तथा तृतीय एसीपी 26 वर्ष में देय होगी।
  2. यदि किसी कार्मिक को प्रथम पदोन्नति तो हो गई है परंतु द्वितीय पदोन्नति नहीं हुई है तो उस दशा में उसे प्रथम पदोन्नति से 6 वर्ष बाद अथवा सम्पूर्ण सेवा के 16 वर्ष पूरे होने पर, जो भी पहले हो पर द्वितीय एसीपी देय होगी।
  3. इसी प्रकार किसी कार्मिक की प्रथम और द्वितीय पदोन्नति तो हो चुकी है लेकिन तृतीय पदोन्नति न हुई हो तो उस कार्मिक को द्वितीय पदोन्नति से 10  वर्ष बाद अथवा सम्पूर्ण सेवा के 26 वर्ष पूरे होने पर, जो भी पहले हो पर तृतीय एसीपी देय होगी।
  4. यदि किसी कार्मिक को 10 वर्ष की सेवा पर भी कोई पदोन्नति प्राप्त नहीं हुई है तो उस दशा में उसे 10 वर्ष की सेवा पर प्रथम एसीपी देय होगी। वहाँ पर उसे प्राप्त हो रहे न्यूनतम वेतनमान पर एक वेतन वृद्धि प्राप्त होगी और अग्रेतर ग्रेड वेतन प्रदान किया जाएगा। परंतु भविष्य में उस पद पर वास्तविक पदोन्नति होने पर कोई वित्तीय लाभ देय नहीं होगा। क्योंकि वह पूर्व मे वह लाभ प्राप्त कर चुका है। यही स्थिति प्रत्येक पदोन्नति और एसीपी के लिए समान रूप से लागू होगी।
  5. 01 जनवरी से 30 जून तक की अवधि के लिए वेतनवृद्धि की तिथि माह जनवरी तथा 01 जुलाई से 31 दिसंबर तक के बीच की अवधि के लिए वेतन वृद्धि की तिथि माह जुलाई रहेगी।
  6. वेतनवृद्धि की आगणित राशि मूल वेतन और ग्रेड वेतन के योग का 3% होगी।
  7. एसीपी का लाभ सीधी भर्ती के पद से मिलता है। माना कोई कार्मिक लिपिक संवर्ग में दिनांक 01-01-1996 कनिष्ठ लिपिक ग्रेड वेतन-2000 के पद पर नियुक्त हुआ हो। और उसकी शैक्षिक योग्यता को देखते हुए उसे दिनांक 01-01-2003 को सहायक लेखाकार ग्रेड वेतन- 2800 पर तैनाती दी जाती है।  तो उसे द्वितीय  एसीपी के रूप में सीधी भर्ती की तिथि से 16 वर्ष की सेवा पर 01-01-2012 को ग्रेड वेतन 4200 देय  होगा।
  8. प्रदेश के अन्य विभागों में समान वेतनमान में की गई सेवा को एसीपी के लिए जोड़ा जा सकता है। परंतु उसके लिए उस कार्मिक की नए विभाग में परिवीक्षा अवधि पूर्ण होनी आवश्यक है। उक्त नियम को

pay fixation in ACP EXAMPLE- 9300+4200= 13500x 3/100= 405 (10 के गुणांक में 410) वेतनवृद्धि के बाद वेतन 9300+410+4200= 13910

संशोधित वेतन ढाँचे में पदोन्नति अब दो प्रकार से सम्भव हो सकती है-

A – एक ही वेतन बैंड के अन्दर एक ग्रेड वेतन से दूसरे ग्रेड वेतन में पदोन्नति ।

B – एक वेतन बैंड से दूसरे वेतन बैंड में पदोन्नति.

दिनांक 01 जनवरी 2006 को या उसके पश्चात संशोधित वेतन ढांचे में एक ग्रेड पे से दूसरे ग्रेड पे में पदोन्नति की स्थिति में PAY FIXATION निम्नानुसार किया जायेगा।

वेतन बैंड में वेतन में अनुमन्य ग्रेड वेतन जोड़ कर इसके 03 प्रतिशत की धनराशि को 10 के अगले गुणांक में पूर्णाकित किया जायेगा। इस धनराशि को वेतन बैंड में मौजूदा वेतन में जोड़ दिया जायेगा। इसके बाद वेतन बैंड में इसके अतिरिक्त पदोन्नत पद के समकक्ष ग्रेड वेतन में वेतन प्रदान किया जायेगा। जहां पदोन्नति में वेतन बैंड में परिवर्तन भी हो ऐसी स्थिति में इसी प्रविधान के अनुसार कार्यवाही की जाएगी तथापि प्रोन्नति के ठीक पूर्व प्राप्त वेतन वृद्धि जोड़ने के बाद जहां वेतन बैंड में  वेतन पदोन्नति वाले पद के उच्च वेतन बैंड के न्यूनतम से काम होगा तो इस वेतन को उक्त वेतन बैंड में न्यूनतम के बराबर बढ़ा दिया जाएगा।

PAY FIXATION 6TH PAY COMMISSION में वेतन निर्धारण का उदाहरण- pay fixation in ACP

राम की 10 वर्ष की सेवा दिनांक 04-04-2012 को पूर्ण होती है। तत्समय उसका वेतन बैंड ₹15000 तथा ग्रेड वेतन ₹4,200 है। उसकी वार्षिक वेतन वृद्धि की तिथि 1 july 2012 को है। दिनांक 04-04-2012  को उसे प्रथम ए.सी.पी. 4,600 स्वीकृत किया जाता है। राम का प्रथम पदोन्नत पद ग्रेड वेतन 4800 है। इस सूचना के आधार पर उसका निम्नानुसार वेतन निर्धारण करें-

  1. एसीपी की स्वीकृति तिथि दिनांक 04-04—2012 को वेतन निर्धारण करें?
  2. कार्मिक के विकल्प के अनुसार आगामी वेतन वृद्धि की तिथि 01-07-2012 को वेतन निर्धारण करें?
  3. दिनांक 01-11-2013 को उत्तराखंड राज्य में शासनादेश संख्या-770 दि0- 06-11-2013 के अनुसार  पदोन्नति के पद का ग्रेड वेतन स्वीकृत होने पर वेतन निर्धारण करें?

उत्तर -1- एसीपी स्वीकृति तिथि को आहरित वेतन- ₹15000+4200= 19200

एसीपी स्वीकृति पर देय ग्रेड वेतन – ₹ 4600

वेतन निर्धारण- (निम्न वेतनस्तर पर एक वेतनवृद्धि देय होगी)

19200*3/100=576 (10 के गुणांक में 580)  15000+580+4600=20180 (आगामी वेतनवृद्धि 1 जनवरी 2013)

2- कार्मिक के विकल्प के अनुसार आगामी वेतन वृद्धि की तिथि 01-07-2012 को वेतन निर्धारण-

एसीपी की तिथि 04-04-2012 को मूल वेतन के साथ बढ़ा हुआ ग्रेड वेतन जुड़ जाएगा। 15000+4600=19600

ब- विकल्प की तिथि दिनांक 01-07-12 को निम्न वेतनस्तर पर 3% वेतनवृद्धि दो बार देय होगी। एक बार पदोन्नति के रूप में और दूसरी वार्षिक वेतनवृद्धि के रूप में।

15000+580+600+4600= 20780   (आगामी वेतनवृद्धि 1 जनवरी 2013)

3- दिनांक 01-11-2013 को उत्तराखंड राज्य में शासनादेश संख्या-770 दि0- 06-11-2013 के अनुसार  पदोन्नति के पद का ग्रेड वेतन स्वीकृत होने पर वेतन निर्धारण-

वेतन- 16180+4600=20780. पदोन्नति के पद का ग्रेड वेतन- 4800 पर वेतन-16180+4800=20980.

नोट- जिस प्रकार पदोन्नति पर वेतन वृद्धि की तिथि मे परिवर्तन होता है उसी प्रकार वेतन उच्चीकरण की दशा में भी आगामी वेतनवृद्धि की तिथि में परिवर्तन होता है। इस प्रकार इस प्रकरण में आगामी वेतनवृद्धि की तिथि 01 जुलाई 2014 हो जाएगी।  

7th Pay Fixation Formula

How Can We 7th COMMISSION PAY FIXATION

7th Pay Fixation Formula

7th PAY COMMISSION की संस्तुतियों पर केन्द्र सरकार द्वारा वेतनमान के सम्बन्ध में  लिये गये निर्णय के आधार पर राज्य सरकारों द्वारा प्रदेश सरकारों के विभिन्न शासकीय कर्मचारियों के वेतनमानों के पुनरीक्षण हेतु वेतन समिति का गठन किया गया। उक्त समितियों के प्रतिवेदनो में की गई संस्तुतियों को विचारोपरान्त कतिपय संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया गया।

सातवें  वेतनमान की कुछ विशेषताएं- 
  1. वार्षिक वेतन वृद्धि माह जनवरी और माह जुलाई नियत होगी।
  2. 01 जनवरी से 30 जून तक के बीच की अवधि के लिए वेतन वृद्धि की तिथि माह जनवरी रहेगी।
  3. 01 जुलाई से 31 दिसंबर तक के बीच की अवधि के लिए वेतन वृद्धि की तिथि माह जुलाई रहेगी।
  4. वेतनवृद्धि की आगणित राशि मूल वेतन और ग्रेड वेतन के योग का 2.57 गुना होगी।

7th Pay Fixation Formula

PAY FIXATION 6TH PAY EXAMPLE-  मूल वेतन- 20000+ ग्रेड वेतन- 4800  (LEVEL-8 ) योग- 24200 x 2.57= 62,194.00     LEVEL 8  में समकक्ष कोष्ठिका- 62200 

यदि वेतनवृद्धि की तिथि जनवरी है तो इसमें वेतनवृद्धि के रूप में अग्रिम कोष्ठिका- 64100 वेतन निर्धारित किया जाएगा। यदि जुलाई है तो 01 जुलाई को वेतनवृद्धि दे होगी। 

नियम यह भी है कि ऐसे मामलों में जहां सरकारी सेवक को 01 जनवरी, 2016 तथा इन नियमों की अधिसूचना के जारी होने की तिथि के मध्य पदोन्नति वेतन बैण्ड/ ग्रेड वेतन का उच्चीकरण, समयमान वेतनमान / ए०सी०पी० के कारण उच्च वेतन बैण्ड एवं ग्रेड वेतन / वेतनमान प्राप्त हुआ है, वह सरकारी सेवक ऐसी पदोन्नति वेतन बैण्ड/ ग्रेड वेतन का उच्चीकरण अथवा समयमान वेतनमान / ए०सी०पी० की व्यवस्था के अन्तर्गत उच्च वेतन बैण्ड एवं ग्रेड वेतन / वेतनमान प्राप्त करने की तिथि से पुनरीक्षित वेतन मैट्रिक्स अपनाये जाने के विकल्प का चयन कर सकता है।

वेतन निर्धारण का उदाहरण- इस नियम के अनुसार यदि कोई कार्मिक दिनांक- 31-12-2015 को मूल वेतन-9390  और ग्रेड वेतन- 2400 प्राप्त कर रहा है। तथा दिनांक 01-11-2016 को उसकी पदोन्नति ग्रेड वेतन 2800 में हो जाती है तो उसे  विकल्प का अधिकार होगा की वह सातवें वेतनमान के अनुसार अपना वेतन निर्धारण दिनांक 01-01-2016 के बजाय 01-11-2016 को निर्धारित करा सकता है। (पूर्व में वेतनवृद्धि की तिथि माह जुलाई है) 

इस विधि में उसका वेतन निर्धारण- दिनांक 31-12-2015 को प्राप्त वेतन- 9390+2400= 11790 

दिनांक 01-07 -2016 को 3% वार्षिक वेतनवृद्धि- 11790+360=12150 

दिनांक 01-11-2016 को पदोन्नति पर एक वेतनवृद्धि देय होगी- (9750+2400) = 12150*3/100=370  (12150+370=12520         

अब सातवें वेतनमान में वेतन निर्धारण- मूल वेतन- 10120+2800= 12920*2.57= 33204.              LEVEL 8  में समकक्ष कोष्ठिका- 33900  

आगामी वेतनवृद्धि की तिथि माह जुलाई 2017 होगी। 

 

Joining Period-कार्यभार ग्रहण काल क्या है

Joining Period-कार्यभार ग्रहण काल

सन्‍दर्भ

वित्‍ती हस्‍तपुस्तिका खण्‍ड-2 भाग 2 से 4 अध्‍याय 11 मूल नियम 105 से 108

सहायक नियम- अध्‍याय 7    नियम 38 से 41

अध्‍याय 18    नियम 173 से 184 (क)

अध्‍याय 20    नियम 197

शासकीय नियम संग्रह प्रस्‍तर 1032 से 1035 तक

  • सरकारी सेवकों को जनहित में एक पद से दूसरे पद पर स्‍थानान्‍तरिक/नियुक्‍त किये जाने पर, उसे नये पद कार्यभार ग्रहण करने हेतु घरलू व्‍यवस्‍था करने तथा नियुक्ति के स्‍थान तक यात्रा करने के लिए नियमों के अन्‍तर्गत अनुमन्‍य होने वाले समय को कार्यभार ग्रहण काल जाता हैं। मूल नियम 9 (7) (क) (।।) के अनुसार कार्यभार ग्रहण काल में सरकारी सेवक डयूटी पर माना जाता हैं तथा वेतनवृद्धि आदि हेतु गिना जाता हैं।
  • सामान्‍यतया प्रथम नियुक्ति की दशा में कार्यभार ग्रहण काल अनुमन्‍य नहीं हैं।
  • सरकारी कर्मचारी को कार्यभार ग्रहण काल प्रदान किया जा सकता हैं-
    • (क)   किसी नये पद का joining Period-कार्यभार ग्रहण करने के लिए, जिस पर वह अपने पुराने पद पर डयूटी करते हुये, या उस पद का कार्यभार छोडने के बाद सीधे ही नियुक्‍त हुआ हो।
    • (ख)   नये पद का कार्यभार ग्रहण करने के लिये
      • चार महीने से अनधिक अवधि का अर्जित अवकाश से लौटने पर
      • जब उसको अपने नये पद पर नियुक्ति के बारे में पर्याप्‍त सूचना न हुई हो, तो उप खण्‍ड (1) में निर्दिष्‍ट अवकाश के अतिरिक्‍त अन्‍य अवकाश से लौटने पर।
      • सहायक नियम 181 के अनुसार अवकाश स्‍वीकृत करने वाला अधिकारी यह निर्णय लेगा कि सूचना अपर्याप्‍त थी अथवा नहीं। मूल  नियम 105
  • यदि किसी सरकारी कर्मचारी को अपने मुख्‍यालय के अतिरिक्‍त किसी अन्‍य स्‍थान पर अपने कार्यभार को छोडने के लिए अधिकृत किया जाय तो जितने कार्यभार ग्रहण काल का वह अधिकारी होगा उस स्‍थान से गिना जायेगा जहॉं उसने अपना कार्यभार वास्‍तव में छोडा हो। मूल नियम 105 में सम्‍बन्धित लेखा-परीक्षा अनुदेश
  • सरकारी सेवकों को प्रशिक्षण के स्‍थान तक जाने तथा वापसी के लिए यात्रा हेतु अपेक्षित उचित समय दिया जायेगा। मूल नियम 105 से सम्‍बन्धित लेखा-परीक्षा अनुदेश
  • केन्‍द्रीय सरकार या किसी अन्‍य राज्‍य सरकार का सरकारी कर्मचारी जो अपने पुराने पद पर डयूटी में रहते हुए उत्‍तरांचल शासन के अधीन किसी पद पर नियुक्‍त होता हैं, परन्‍तु जो केन्‍द्रीय या दूसरी राज्‍य सरकार के अन्‍तर्गत त्‍याग-पत्र या किसी अन्‍य कारण से अपनी सेवा की समाप्ति के पश्‍चात् अपने नये पद का कार्यभार ग्रहण करता हैं, तो उसको कोई कार्यभार ग्रहण काल अथवा उस काल का वेतन नहीं दिया जाना चाहिये जब तक कि किसी कर्मचारी विशेष की नियुक्ति अधिक विस्‍तृत जनहित में न हो। मूल नियम 105 के अन्‍तर्गत राज्‍यपाल के आदेश
  •  कार्यभार ग्रहण काल ऐसे नियमों द्वारा विनियमित किया जायेगा जो शासन वास्‍तविक गमन के लिए तथा गृहस्‍थी को व्‍यवस्थित करने के लिए अपेक्षित समय को ध्‍यान में रखते हुए निर्धारित कर दें। मूल नियम 106
  • कार्यभार ग्रहण काल में उसको वही वेतन मिलेगा जो वह स्‍थानान्‍तरिक न होने पर पाता या वह वेतन जो वह नये पद का कार्यभार ग्रहण करने पर पायेगा, इसमें से जो भी कम हो।मूल नियम 107
  • कोई सरकारी कर्मचारी जो कार्यभार ग्रहणकाल के भीतर अपने पद पर कार्यभार ग्रहण नहीं करता, वह कार्यभार ग्रहणकाल की समाप्ति पर किसी वेतन या अवकाश वेतन पाने का अधिकारी नहीं रह जाता। कार्यभार ग्रहणकाल की समाप्ति के पश्‍चात डयूटी से जान-बूझकर अनुपस्थिति को नियम 15 के लिए दुर्व्‍यहार समझना चाहिये।
  • किसी व्‍यक्ति को जो सरकारी सेवा के अतिरिक्‍त किसी अन्‍य सेवा में हो या जो ऐसी सेवा में होते हुये अवकाश पर हो यदि शासन के हित में शासन के अन्‍तर्गत किसी पद पर नियुक्ति किया जाय, तो उसे शासन के विवेक पर, उस अवधि के लिये कार्यभार ग्रहण काल पर माना जा सकता हैं जिसमें वह शासन के अन्‍तर्गत पद का कार्यभार ग्रहण करने के लिये तैयारी करे तथा यात्रा करें या जब वह शासन के अन्‍तर्गत पद से प्रत्‍यावर्तित होकर अपनी मूल सेवा या निजी सेवा में आने के लिये तैयारी तथा यात्रा करें।   मूल नियम 108 (क)

अर्जित अवकाश से लौटने की दशा में संगत स्‍थान

120 दिन से अनधिक अवधि के अर्जित अवकाश काल में नये पद पर नियुक्ति की दशा में कार्यभार ग्रहण काल का हिसाब सरकारी सेवक के पुराने पद के स्‍थान से अथवा नियुक्ति आदेश प्राप्‍त होने के स्‍थान से किया जाना चाहिए तथा इनमें से जो समय कम हो।  यदि नियुक्ति आदेश अवकाश में प्रस्‍थान से पहले प्राप्‍त हो चुका हो तो कार्यभार ग्रहण काल का हिसाब सरकारी सेवक के पुराने पद के स्‍थान अथवा उस स्‍थान से जहां से वह नये पद का कार्यभार ग्रहण करने के लिए वास्‍तव में प्रस्‍थान करें इनमें से जो भी समय कम हो, वहां से प्रदान किया जाना चाहिए।  ऐसे सरकारी सेवकों जिनके द्वारा स्‍थानान्‍तरण की दशा में नये पद का कार्यभार ग्रहण करने के लिए अनुमन्‍य तैयारी के लिए छ: दिन के कार्यभार ग्रहण काल का उपयोग यदि नहीं किया जाता हैं तो उन्‍हें ऐसे अवशेष कार्यभार ग्रहण काल को विशेष आकस्मिक अवकाश के रूप में स्‍थानान्‍तरण के छ:माह के भीतर उपभोग करने की अनुमति प्रदान कर दी जायेगी। शासनादेश संख्‍या जी-1-1156/दस-204/81, दिनांक 71 सितम्‍बर, 1988 तथा जी-1-1038/दस-204/81, दिनांक 04 सितम्‍बर, 1989

*     कार्यभार ग्रहण काल की अविध

(क)   निवास स्‍थान आवश्‍यक रूप से न बदलने की दशा में-  एक दिन से अधिक का समय कार्यभार ग्रहण काल के रूप में अनुमन्‍य नहीं हैं।

(ख)   निवास स्‍थान का परिवर्तन आवश्‍यक होने की दशा में 30 दिन की अधिकतम सीमा के अधीन कार्यभार ग्रहण काल निम्‍न प्रकार से देय हैं।

  1. छ: दिन तैयारी के लिए
  2. बाकी वास्‍तविक यात्रा के लिए
यात्रा का साधनअनुमन्‍य काल
रेलगाडी  द्वाराप्रत्‍येक 500 किमी0 के लिए एक दिन
समुद्री स्‍टीमर द्वाराप्रत्‍येक 350 किमी0 के लिए एक दिन
नदी स्‍टीमर द्वाराप्रत्‍येक 150 किमी0 के लिए एक दिन
मोटर कार या बस द्वाराप्रत्‍येक 150 किमी0 के लिए एक दिन
किसी अन्‍य प्रकार सेप्रत्‍येक 25 किमी0 के लिए एक दिन

 

यात्रा के आरम्‍भ में अथवा सडक द्वारा रेलवे/बस स्‍टेशन तक अथवा रेलवे/बस स्‍टेशन से निवास तक की गयी 08 किमी0 तक की यात्रा को कार्यभार ग्रहण काल के लिए नहीं गिना जाता हैं। रविवार को एक दिन गिना जाता हैं। सहायक नियम 174

यात्रा मार्ग- सरकारी कर्मचारी वास्‍तव में चाहे जिस रास्‍तें से यात्रा करे उसका कार्यभार ग्रहण समय उसी रास्‍तें से लगाया जायेगा जिसे यात्री साधारणतया प्रयोग में लाते हैं, जब तक कि स्‍थानान्‍तरण करने हेतु सक्षम प्राधिकारी द्वारा विशेष कारणों का उल्‍लेख करते हुए अन्‍यथा आदेश न दे दिये गये हों। सहायक नियम 176

यदि सरकारी कर्मचारी को अपने मुख्‍यालय के अतिरिक्‍त अन्‍य स्‍थान में अपने पद का कार्यभार सौपने के लिये अधिकृत किया जाता हैं तो उसके कार्यभार ग्रहण काल का हिसाब उस स्‍थान से लगाया जायेगा जिस स्‍थान में वह कार्यभार सौंप दें। सहायक नियम 177

कार्यभार ग्रहण काल के दौरान नियुक्ति में परिवर्तन होने की दशा में कार्यभार ग्रहण काल

  • जब कोई सरकारी सेवक एक पद का कार्यभार सौंपकर दूसरे पर का कार्यभार ग्रहण करने के लिए जाते समय किसी अन्‍य नये पद पर नियुक्‍त कर दिया जाता हैं तो उस नये पद का कार्यभार संभालने के लिए उसके कार्यभार ग्रहण का प्रारम्‍भ नियुक्ति आदेश प्राप्‍त होने की तिथि के अगले दिन से होता हैं।
  • नियुक्ति में इस प्रकार परिवर्तन होने पर अनुमन्‍य होने वाले कार्यभार ग्रहण काल में तैयारी के लिए मिलने वाला छ: दिन दुबारा शामिल नहीं किया जायेगा। सहायक नियम 178
  • यदि सरकारी कर्मचारी एक पद से दूसरे का कार्यभार ग्रहण करने हेतु जाते समय अवकाश लेता हैं तो उसके पुराने पद के कार्यभार सौपंने के पश्‍चात जो समय व्‍यतीत हो गया हो, उसे अवकाश में सम्मिलित कर लिया जाना चाहिए जब तक कि लिया गया अवकाश चिकित्‍सा प्रमाण पत्र अवकाश न हो। चिकित्‍सा प्रमाण पत्र पर अवकाश की दशा में इस प्रकार व्‍यतीत हुए समय को कार्यभार ग्रहण काल अथवा उसका भाग माना जाना चाहिए। सहायक नियम 179

छुटिटयों का कार्यभार ग्रहण काल के साथ संयुक्‍तीकरण

  • कार्यभार ग्रहण काल समाप्‍त होने के तुरन्‍त पश्‍चात पडने वाली छुटिटयों अथवा रविवार को कार्यभार ग्रहण काल के साथ संयुक्‍त करने की अनुमति स्‍थानान्‍तरण करने हेतु सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रदान की जा सकती हैं. सहायक नियम 38
  • कार्यभार ग्रहण काल के भीतर कार्यभार ग्रहण न करने पर वेतन पाने का अधिकार नहीं
  • कोई सरकारी कर्मचारी जो कार्यभार ग्रहण काल के भीतर अपने पद पर कार्यभार ग्रहण नहीं करता, वह कार्यभार ग्रहण काल की समाप्ति पर किसी भी वेतन या अवकाश वेतन पाने का अधिकारी नहीं रह जाता ।
  • कार्यभार ग्रहण काल की समाप्ति के पश्‍चात् डयूटी से जानबूझकर अनुपस्थिति को मूल नियम 15 के प्रयोजनार्थ दुर्व्‍यवहार समझा जाना चाहिए।
  • विशेष परिस्थितियों में विभागाध्‍यक्ष 30 दिन तक का कार्यभार ग्रहण काल स्‍वीकृत कर सकता हैं
    1. अनुमन्‍य समय से अधिक समय यात्रा में वास्‍तव में व्‍यतीत किया हो
    2. स्‍टीमर छूट गया हो।
    3. यात्रा में बीमार पड गया हो।           सहायक नियम 184
  • तीस दिन से अधिक कार्यभार ग्रहण काल के लिए शासन की स्‍वीकृति आवश्‍यक हैं।  सहायक नियम 183
  • यदि सक्षम अधिकारी चाहे तो जनहित में कार्यभार ग्रहण काल को कम कर सकता हैं। पैरा 1032 (2) शासकीय नियम संग्रह
  • वेतन जो स्‍थानान्‍तरण न होने पर वह पाता अथवा वह वेतन जो नये पद का कार्यभार ग्रहण करने पर उसको प्राप्‍त होगा, इन दोनों में कम हो। सहायक नियम 107 (ख)
  • अवकाश से लौटने पर नये पद का कार्यभार ग्रहण करने पर अनुमन्‍य होने वाला कार्यभार ग्रहण काल का वेतन
    1.  जब वह अन्‍य अवकाश के क्रम में लिए गये चौदह दिन से अनधिक असाधारण अवकाश के अतिरिक्‍त लिये गये असाधारण अवकाश से लौटा हो तो किसी भी भुगतान का अधिकारी नहीं होगा।
    2. यदि वह किसी अन्‍य प्रकार के अवकाश से लौटा हो तो वह उस अवकाश वेतन का अधिकारी होगा जो अवकाश वेतन के भुगतान के लिए निर्धारित दर पर अवकाश में उसने अन्तिम बार पाया हो। सहायक नियम 107 (ख)
  • ए‍क लिपिक वर्ग कर्मचारी स्‍थानान्‍तरण होने पर कार्यभार ग्रहण-काल में कुछ भी पाने का अधिकारी नहीं होगा जब तक कि उसका स्‍थानान्‍तरण जनहित में न किया गया हो। सहायक नियम 107 का अपवाद

अन्‍य प्रतिकर भत्‍तों का भुगतान

    1. कार्यभार ग्रहणकाल में कोई प्रतिकर भत्‍त तभी देय होता हैं जबकि वह पुराने व नये दोनों पदों पर सरकारी सेवक को अनुमन्‍य होता हैं।
    2. यदि वह भत्‍ता दोनों पदों पर समान दर पर भुगतान किया जाता हैं तो कार्यभार ग्रहण काल के लिए उसका भुगतान उसी दर पर किया जायेगा।
    3. जहां इन दो पदों पर सम्‍बद्ध भत्‍तों की दरों में भिन्‍नता हो तो प्रतिकर भत्‍ते का भुगतान निम्‍न दर पर किया जायेगा।

 

 

Types of Pension and Calculation

पुरानी पेंशन के प्रकार और आगणन
Types of Pension and Calculation

विभिन्न परिस्थितियों  में सेवा निवृत्त होने वाले शासकीय कर्मचारियों /अधिकारियों को निम्नांकित में से किसी एक प्रकार की पेंशन देय होती है:- 

 1- अधिवर्षता पें(Superannuation Pension) (अनुच्छेद 458, सी0एस0आर0)

प्रत्येक श्रेणी के राज्य कर्मचारियों के लिए सेवा की एक अधिवर्षता आयु निर्धारित होती है अर्थात एक निर्धारित आयु प्राप्त करने के उपरान्त ऐसे शासकीय सेवकों को सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। वर्तमान समय में सामान्यतः शासकीय सेवकों के सन्दर्भ में अधिवर्षता आयु 60 वर्ष है। इसके अतिरिक्त न्यायिक व कुछ अन्य सेवाओं के लिए अधिवर्षता आयु उपरोक्त से भिन्न हो सकती है, जो कि शासन  द्वारा निर्धारित की जाती है। प्रत्येक सरकारी सेवक जिस माह में 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत  हो जाता है उसे अधिवर्षता आयु पर सेवानिवृत कहते हैं। Civil Service Regulations  के Rule 458 के अनुसार अगर सरकारी सेवक की जन्मतिथि माह का प्रथम दिवस है तो सरकारी सेवक पिछले माह के अन्तिम दिवस को सेवानिवृत्त होगा। और किसी और तिथि के लिए माह की अन्तिम तिथि को सेवानिवृत्त होगा। अधिवर्षता पर 10 वर्ष की नियमित एवं अर्हकारी सेवा पूर्ण करने वाले सभी सेवकों को अधिवर्षता पेंशन की सुविधा अनुमन्य है। पेंशन अंतिम वेतन का आधी धनराशि होती है।  अधिवर्षता पेंcalculation  के लिए क्लिक करें

उत्तर प्रदेश पेंशन संबंधी शासनादेश, उत्तराखंड पेंशन संबंधी शासनादेश

पेंशन का आगणन और पेंशन आगणन की विधि-

माना किसी सेवानिवृत कार्मिक का अंतिम वेतन 100000 और महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत है। उसकी कुल सेवा अवधि 34 वर्ष है। इसी उदाहरण में हम विभिन्न पेंशन आगणन करेंगे-

पेंशन अनुमन्यता हेतु अर्हकारी सेवा- 

1- अधिकतम 33 वर्ष की सेवा अर्थात 66 छमाही ही उपादान (Graituaty) के लिए जोड़ी जाती हैं। तीन माह से अधिक की अवधि पूर्ण छमाही जोड़ी जाती है।

2- 20 वर्ष की सेवा पर पूर्ण पेंशन देय होती है।

3- 10 वर्ष से कम की अर्हकरी सेवा होने पर पेंशन अनुमन्य नहीं होती है। तथा ऐसी स्थिति में पूर्व की भांति केवल सर्विस graitiuaty अनुमन्य होगी।

4- 20 वर्ष की सेवा पर पूर्ण पेंशन अनुमान्य होगी।

5- 20 वर्ष या इससे अधिक की सेवा पर अंतिम माह के अंतिम दिवस में आहृत वेतन या 10 माह की औसत परिलब्धियाँ जो भी कर्मचारी के लिए लाभकारी हो, के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन अनुमन्य होगी।

6- यदि अर्हकरी सेवा 10 वर्ष से अधिक किन्तु 20 वर्ष से कम है तो पेंशन की राशि आनुपातिक रूप से काम हो जाएगी परंतु यह राशि किसी भी दशा में रू0 9000/-प्रतिमाह से काम नहीं होगी।

6- प्राय: देखने में आता है कि किसी कार्मिक की मृत्यु की दशा में उस कार्मिक को मृत्यु की तिथि तक का वेतन आहरित किया जाता है। परंतु जानकारी के अभाव में की बार विभाग द्वारा अंतिम माह को आहरित वेतन पर ही उपदान आगणित कर दिया जाता है। जो की त्रुटिपूर्ण है। जबकि पूर्ण वेतन पर उपादान  आगणित किया जाना चाहिए।

(Graituaty) उपादान के लिए नियम-
  • अधिवर्षता पर उपादान आगणन सूत्र- वेतन+महंगाई भत्ताx कुल छमाही/4

50000+25000(50%)    75000 x 64/4=  1,200,000.00 

(Commutation) राशिकरण  के लिए नियम-

2- सेवानिवृत्तिक पेंशन (Retiring Pension):

(मूल नियम – 56, स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य सेवानिवृत्ति की स्थिति में)

वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड 2, से 4 के मूल नियम 56 के अनुसार किसी सरकारी सेवक द्वारा अधिवर्षता आयु प्राप्त करने के पूर्व यदि उसे अनिवार्यतः सेवानिवृत्त कर दिया जाता है अथवा स्वयं उसके द्वारा स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति प्राप्त की जाती है तो ऐसे सरकारी सेवकों को देय पेंशन, सेवानिवृत्त पेंशन के नाम से जानी जाती है।

नोट- पेंशन का आगणन अधिवर्षता पेंशन की भांति की जाती है। 

(अ) अनिवार्य सेवानिवृत्ति (Compulsory Retirement) : नियमतः नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा किसी ऐसे सेवक जिसने 50 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो, तीन माह का नोटिस अथवा उसके बदले में वेतन तथा भत्ता देकर जनहित में सेवानिवृत्त किया जा सकता है। इस प्रकार की सेवानिवृत्ति को अनिवार्य सेवानिवृत्ति कहा जाता है। मूल नियम 56 ई के अनुसार प्रत्येक सरकारी सेवक को सेवानिवृत्तिक पेंशन एवं अन्य लाभ देय होंगे। उल्लेखनीय है कि शासनादेश सं0- सा-2-514/दस दिनांक 19.07.1995 द्वारा शासन ने यह निदेश जारी किया है कि अनिवार्यतः सेवानिवृत्त किये जाने की दशा में तीन माह के नोटिस के स्थान पर तीन माह के भत्ते देकर तुरन्त सेवानिवृत्त कर देना चाहिये।

(ब)  स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ( Voluntary Retirement) : कोई सरकारी सेवक जिसने 45 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो या जिसकी 20 वर्ष की अर्हकारी सेवा पूर्ण हो गयी हो, नियुक्ति प्राधिकारी को तीन माह की नोटिस देकर स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो सकता है। परन्तु प्रतिबन्ध यह है कि ऐसे सरकारी सेवक द्वारा जिनके विरूद्ध अनुशासनिक कार्यवाही विचाराधीन या आसन्न हो, दी गयी नोटिस तभी प्रभावी होती है, जब उसे नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा स्वीकार कर लिया जाये। यदि सेवानिवृत्ति तत्काल वांछित हो, स्वेच्छा से सेवानिवृत्त के मामले में तीन माह के नोटिस की शर्त नियुक्ति प्राधिकारी शिथिल कर सकता है। स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने के लिए सरकारी सेवक द्वारा दी गयी नोटिस नियुक्ति प्राधिकारी की अनुज्ञा के बिना वापस नहीं लिया जा सकता है। स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी सेवक की सेवा अवधि के आगणन में 5 वर्ष या अधिवर्षता आयु प्राप्त होने पर सेवानिवृत्त होने में जितना अवधि शेष रहती हो, इन दोनों अवधियों में से जो भी कम हो, उस अवधि का अतिरिक्त लाभ अनुमन्य होता है, परन्तु यह लाभ उस सरकारी सेवक को प्रदान नहीं किया जा सकता, जिसकी सत्यनिष्ठा संदिग्ध हो। छठे वेतन आयोग की संस्तुतियां लागू होने के उपरान्त 33 वर्ष की अर्हकारी सेवा के स्थान पर 20 वर्ष की अर्हकारी सेवा पर पूर्ण पेंशन दिये जाने का प्राविधान करने के परिणामस्वरूप दिनांक 01-01-2006 से उक्त अतिरिक्त लाभ की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है।

 3-  पारिवारिक पेंशन  (Family Pension) (नयी पारिवारिक पेंशन  योजना, 1965)

किसी कार्मिक की मृत्यु उसके सेवाकाल में अथवा सेवानिवृत्ति के उपरान्त हो जाने पर  उसके द्वारा नामित व्यक्ति/परिवार के सदस्यों को मिलने वाली पेंशन पारिवारिक पेंशन के नाम से जानी जाती है। सेवारत मृत्यु हो जाने पर पारिवारिक पेंशन पाने के लिए कोई सेवा अवधि अनिवार्य नहीं है, लेकिन शर्त यह है कि सरकारी सेवक ने नियमानुसार चिकित्सा परीक्षा करवाई हो और सरकारी सेवा के लिए योग्य पाया गया हो। सेवानिवृत्ति के उपरान्त उन्हीं सरकारी सेवकों के मामले में पारिवारिक पेंशन देय है, जिन सरकारी सेवक को पेंशन अनुमन्य रही हो।

पारिवारिक पेंशन के रूप में देय राशि – मृतक कार्मिक की मृत्यु के 10 वर्ष तक पारिवारिक पेन्शनर को मूल वेतन की आधी धनराशि पेंशन के रूप में तथा उसके बाद मूल वेतन का 30% राशि पारिवारिक पेंशन के रूप में देय होती है।

 4-  असाधारण पेंशन  (Extraordinary Pension ) :

Uttar Pradesh Civil Service  (Extraordinary Pension) नियमावली, उसकी प्रथम संशोधन नियमावली 1981 व द्वितीय संशोधन नियमावली 1983 तथा शासनादेश संख्या सा-3/1340/दस-916-88 दिनांक 19-8-1988 व शासनादेश संख्या सा-3-1145/दस-916/88 दिनांक 17-08-1993 के अनुसार जब कोई कर्मचारी अपने पद के जोखिम के परिणामस्वरूप मारा जाता है या लगी चोट से मर जाता है तो उसके परिवार को असाधारण पेंशन, तात्कालिक सहायता व अनुग्रह धनराशि देय होती है। मृत्यु के प्रकरणों के अतिरिक्त उक्त शासनादेश दिनांक 19-08-1998 व शासनादेश दिनांक 17-08-1993 के अनुसार कर्तव्य पालन के दौरान जो सेवक विशेष जोखिम की परिस्थितियों में गम्भीर रूप से घायल हो जाने के कारण सेवा में बनाये रखने के योग्य न रह जाय तो ऐसे सेवकों को भी मृत्यु के प्रकरणों की भांति असाधारण पेंशन, तात्कालिक सहायता व अनुग्रह धनराशि देय होती है। असाधारण पेंशन की स्वीकृति महालेखाकार की संस्तुति पर शासन द्वारा प्रदान की जाती है।

देय राशि- मृतक कार्मिक की उस तिथि तक जिस तिथि तक उसके जीवित रहते हुए उसे अधिवर्षता पर पेंशन स्वीकृत की जाती उस तिथि तक नॉमिनी को पूर्ण पेंशन दे होगी। उसके बाद पारिवारिक पेंशन की भांति गणना की जाएगी। 

5    एक्सग्रेसिया पेंशन (ex-gratia Pension) :

एक्सग्रेसिया पेंशन उन सेवकों को देय होती है जो सेवा के दौरान अन्धे या विकलांग हो जाय और जिन्हें नियमों के अन्तर्गत कोई पेंशन देय न हो। शासनादेश संख्या सा-2-574/दस-942/75 दिनांक 19- 06-1976 के अनुसार यह योजना दिनांक 19-06-1976 से लागू है।

जिन सरकारी सेवकों की मृत्यु सरकारी कार्य के दायित्वों के निर्वहन के फलस्वरुप हो जाती है उन्हें राज्य सरकार द्वारा एक्सग्रेसिया की धनराशि का एकमुष्त भुगतान किया जाता है –

(क)- यदि कर्तव्यपालन की अवधि में दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है।

(ख)-कर्तव्यपालन के समय आतंकवादी/अराजकतत्वों की गतिविधियों में हुयी हिंसा के फलस्वरुप मृत्यु होने पर।

(ग)-देश की सीमा पर अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध या सीमा पर छुटपुट घटनाओं अथवा लड़ाकू/ आतंकवादियों अथवा अतिवादियों आदि की गतिविधियों के फलस्वरुप मृत्यु होने पर।

(घ)-अति दुर्लभ पहाड़ी ऊँचाइयों/दुर्लभ सीमा अथवा प्राकृतिक विपदाओं अथवा अति खराब मौसम में कर्तव्यपालन करते हुए मृत्यु होने पर।

पेंशन के रूप में गणना उसी प्रकार की जाती है जिस प्रकार सरकारी कार्मिक की मृत्यु की दशा में स्वीकृत जाती। अर्थात पारिवारिक पेंशन के समान पेंशन एवं अन्य लाभ दे होंगे। 

6    अशक्तता पेंशन (Invalid Pension)  (अनुच्छेद 441-447, सी0एस0आर0)

अशक्तता पेंशन Civil Service Regulations  के Rule 441 से 457 में उल्लिखित व्यवस्था के अनुसार शारीरिक अथवा मानसिक अशक्तता के परिणामस्वरूप स्थायी रूप से अशक्त हो जाने की दशा में संबंधित सरकारी सेवक द्वारा सक्षम चिकित्सा अधिकारी से निर्धारित प्रारूप में अशक्तता चिकित्सा प्रमाणपत्र प्राप्त कर नियुक्ति प्राधिकारी को प्रस्तुत किये जाने पर अशक्तता पेंशन अनुमन्य होती है तथा उसे अशक्तता प्रमाणपत्र जारी होने के दिनांक से सेवानिवृत्त माना जायेगा। प्रमाण-पत्र में स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया जाना चाहिए कि उसकी अशक्तता/अयोग्यता सरकारी सेवक की अनियमित अथवा असंयमित आदतों के परिणामस्वरूप नहीं हुई है। यदि किसी सेवक को अवकाश स्वीकृत किया जा चुका है तो उसकी समाप्ति की तिथि से उसे अशक्तता पेंशन पर सेवानिवृत्त किया जायेगा। इसके अतिरिक्त सहायक नियम- 100, वि0 नि0 स0, खण्ड-2 भाग 2 – 4 के अन्तर्गत अशक्त घोशित कर्मचारी को 6 माह तक का अवकाश यदि देय हो, विषेश रूप से स्वीकृत किया जा सकता है। अशक्तता की दशा में सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी कर्मचारी को अनुमन्य पेंशन धनराशि किसी भी दशा में उस धनराशि से कम नहीं होगी जो उसके परिवार को उक्त तिथि पर उसकी मृत्यु होने की दशा  में नयी पारिवारिक पेंशन योजना के अधीन उस समय पारिवारिक पेंशन के रूप में देय होगी। शासनादेश  संख्या- सा-3-1152/दस-915/89, दिनांक 01 जुलाई, 1989 के अनुसार अस्थाई सरकारी सेवक भी अशक्तता पेंशन हेतु अर्ह हैं।

7   प्रतिकर/अनुपूरक पेंशन (Compensation Pension)  (अनुच्छेद 426, सी0एस0आर0)

Civil Service Regulations  के Rule 426 के अनुसार किसी स्थायी पद के समाप्त होने के फलस्वरूप सेवामुक्त किये गये स्थायी सरकारी सेवक को यदि समान स्तर के किसी अन्य पद पर नियुक्त न किया जाये, तो उसे यह विकल्प उपलब्ध रहता है कि उसके द्वारा की गयी अर्हकारी सेवा के लिए नियमानुसार अनुमन्य पेंशन को प्रतिकर पेंशन के रूप में स्वीकृत किया जाए अथवा किसी अन्य पद, चाहे वह निम्नतर स्तर का भी हो, पर नियुक्ति के प्रस्ताव को स्वीकार कर ले तथा पूर्व पद पर की गयी सेवा अवधि की गणना पेंशन हेतु की जाए। शासनादेश संख्या- सा-3-1713/दस-87-933/89, दिनांक 28 जुलाई, 1989 के संलग्नक-1-सी  पेंशन स्वीकर्ता अधिकारियों के लिए दिशा निर्देश  के बिन्दु 11(2) के अनुसार प्रतिकर पेंशन हेतु अस्थाई सरकारी सेवक भी अर्ह हैं।

Types of Pension and Calculation

पुरानी पेंशन योजना

पुरानी पेंशन योजना

पुरानी  पेंशन योजना से सम्बन्धित नियम उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस रेग्युलेशन  (सी0एस0आर0) में प्राविधानित हैं। दिनांक 01.04.1961 से पूर्व पेंशन सम्बन्धी शासन के कोई पृथक नियम नहीं थे एवं समस्त शासकीय सेवकों के पेंशन सम्बन्धी मामले सी0एस0आर0 में निहित नियमों के अन्तर्गत देखे जाते थे। उक्त नियमों में किसी कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु हो जाने पर, पारिवारिक पेंशन का कोई प्राविधान नहीं था।    पुरानी  पेंशन योजना के अंतर्गत दूसरे शब्दों में कहें तो,  सेवा की एक निश्चित अवधि पूर्ण करने के उपरान्त ही पेंशन देय होती थी। उक्त नियमों के अन्तर्गत कर्मचारी द्वारा सी0पी0फण्ड के खाते में नियमित रूप से धनराषि जमा की जाती थी एवं उसके खाते में सेवानिवृत्त होने पर सरकार उक्त खाते में अपना हिस्सा जमा करने के पश्चात् कर्मचारी की पेंशन निर्धारित करती थी। उक्त विधि काफी जटिल थी अतः सामान्यतया पेंशन निर्धारण में काफी विलम्ब हो जाता था। दिनांक 01.04.1961 से सरकारी विज्ञप्ति सं0- सा-3-749/दस दिनांक 29.03.1962 द्वारा    पुरानी  पेंशन योजना के  नियमों एवं निर्धारण विधि को सरलीकृत करते हुए पेंशन नियमों का सृजन किया गया। यह नियम उत्तर प्रदेश लिबरलाइज्ड पेंशन रूल्स 1961, उत्तर प्रदेश रिटायरमेन्ट बेनिफिट्स रूल्स 1961, से जाना जाता है।

यह अनुभव किया गया कि उक्त “उत्तर प्रदेश रिटायरमेन्ट बेनिफिट्स रूल्स 1961“ में निहित नियमों के अन्तर्गत, किसी कर्मचारी/अधिकारी की, सेवाकाल में अथवा सेवानिवृत्ति के उपरान्त मृत्यु हो जाने पर मिलने वाली पारिवारिक पेंशन का लाभ अत्यन्त सीमित है। अतः शासन द्वारा 01.04.1965 से नयी पारिवारिक पेंशन योजना 1965 बनाते हुए पारिवारिक पेंशन के लाभों का विस्तार किया गया। (विज्ञप्ति सं0- सा-31769/दस दिनांक 24.08.1966)

उपरोक्त लाभकारी नियम बनाकर    पुरानी  पेंशन योजना के तहत पेंशन /पारिवारिक पेंशन सम्बन्धी सुविधाओं को और अधिक उदार एवं लाभप्रद बनाया गया है। साथ ही सरकार की सदैव वह मंशा रही है कि समस्त सरकारी सेवकों को उनके सेवानिवृत्त होने पर यथाशीघ्र लाभों का भुगतान प्राप्त हो जाय। इसी आशय से उ0प्र0 शासन द्वारा समय-समय पर विभिन्न शासनादेश संख्या सा-2085/दस-907-76 दिनांक 13 दिसम्बर 1977, शासनादेश संख्या सा-3-1713/दस-933-89 दिनांक 28 जुलाई, 1989 द्वारा पेंशन प्रपत्रों का सरलीकरण कर ‘‘एकीकृत पेंशन प्रपत्र‘‘ निर्धारित किया गया व पेंशन प्रपत्रों की तैयारी हेतु एक 24 माह की समय-सारणी भी निर्धारित कर दी गयी। दिनांक 2 नवम्बर 1995 से उत्तर प्रदेश पेंशन मामलों की (प्रस्तुतीकरण, निस्तारण और विलम्ब का परिर्वजन) नियमावली 1995 भी ससमय सेवानैवृत्तिक लाभों की स्वीकृति एवं भुगतान सुनिश्चित करने हेतु लागू की गयी। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन के उपरान्त नवगठित राज्य उत्तराखण्ड में अधिसूचना संख्या-1033/वि0अनु0-4/003 दिनॉक 10 नवम्बर, 2003 द्वारा पुनः उत्तराखण्ड, प्रस्तुतीकरण, निस्तारण और विलम्ब का परिवर्जन नियमावली 2003 लागू की गयी।

पुरानी  पेंशन योजना की  अनुमन्यता:-

शासन का अपने कर्मचारियों/अधिकारियों को पेंशन देने का प्रमुख उद्देश्य है कि राजकीय सेवा से पृथक होने के उपरान्त उन्हें अथवा उनके परिवार को जीवन यापन में आर्थिक सहयोग देना। कोई कर्मचारी शासकीय सेवा से निम्नांकित प्रकार से पृथक हो सकता है अथवा किया जा सकता हैः-

1-            अधिवर्षता आयु पूर्ण करने पर।

2-            अनिवार्य सेवानिवृत्ति।

3-            निर्धारित सेवाकाल पूर्ण करने के उपरान्त।

4-            शारीरिक अथवा मानसिक अपंगता के कारण।

5-             व्यक्तिगत कारणवश स्वेच्छा से।

6-             सेवाकाल में मृत्यु हो जाने के कारण।

7-            किसी स्थाई पद जिस पर वह कार्यरत है, के समाप्त हो जाने पर।

पुरानी  पेंशन योजना में इन विभिन्न परिस्थितियों में दी जाने वाली पेंशन की धनराशि व आंगणन की विधि भिन्न-भिन्न है। इसके अतिरिक्त नीचे लिखी परिस्थितियों में सरकारी सेवक पेंशन के लाभ से वंचित रहता है।

1-            यदि वह सेवा जो वह कर रहा है, वह पेंशनेबल न हो, उस दशा में पेंशन नहीं मिलती है।

2-            यदि किसी सरकारी सेवक को किसी दण्डनीय अपराध में दोषी पाया गया हो।

3-            यदि किसी सरकारी सेवक द्वारा दैनिक भुगतान (daily wages) के आधार पर सेवा की गयी हो।

4-            यदि कोई कर्मचारी को तदर्थ सेवा के रूप में कार्य लिया गया हो। तथा किसी भी पद पर सेवानिवृत्ति तक स्थाई न किया गया हो। उल्लेखनीय है, कि शासनादेश सं0-सा-3-1152/दस दिनांक 01.07.1989 द्वारा                   पूर्णतया अस्थाई रूप से सेवानिवृत्त हो जाने वाले कर्मचारी को भी पेंशन और ग्रेच्यूटी का लाभ दिनांक 01.06.1989 से प्रदान कर दिये गये हैं, यदि उसने कम से कम 10 वर्श की सेवा की हो। तात्पर्य यह है कि                     कोई कर्मचारी यदि किसी भी पद पर स्थायी न हुआ हो तो भी उसे पेंशन स्वीकृत की जा सकती है।

5-            यदि सम्बन्धित कर्मचारी किसी आरोप से विभागीय कार्यवाही के उपरान्त सेवा से निष्काषित कर दिया गया हो। अर्थात् डिसमिस सा रिमूव कर दिया गया हो।

6-            यदि संबंधित कर्मचारी द्वारा नियमानुसार न्यूनतम निर्धारित सेवा अवधि 10 वर्ष पूर्ण न की गयी हो।

7-            यदि कर्मचारी द्वारा निर्धारित अवधि से पूर्व सेवा से त्यागपत्र देकर स्वयं को सेवा से पृथक कर लिया हो।

Travelling Allowance Rules वि0ह0पु0 खंड-3

Travelling Allowance Rules वि0ह0पु0 खंड-3

Travelling Allowance Rules Volume-3        All India Service Travelling Allowance Rules

उत्तर प्रदेश-यात्रा भत्ता शासनादेश                    उत्तराखंड-यात्रा भत्ता शासनादेश

वि0ह0पु0 खंड-3 में Travelling Allowance Rules की व्यवस्था निर्धारित है।

वास्तविक यात्रा व्यय का अर्थ सरकारी कर्मचारी को उसके व्यक्तिगत सामान के साथ लाने-ले जाने की वास्तविक लागत है, जिसमें फेरी और अन्य टोल के लिए शुल्क और शिविर उपकरण की ढुलाई, यदि आवश्यक हो, शामिल है। इसमें होटल, यात्रियों के बंगले या जलपान के लिए या दुकानों या वाहनों की ढुलाई के लिए या कोचमैन और इसी तरह के उपहारों के लिए शुल्क शामिल नहीं है; या इस तरह के आकस्मिक नुकसान या खर्च के लिए कोई भत्ता जैसे कि क्रॉकरी का टूटना, फर्नीचर की टूट-फूट और अतिरिक्त नौकरों का रोजगार।

दैनिक भत्ता – दैनिक भत्ता आठ किलोमीटर के दायरे से बाहर किसी स्थान पर ड्यूटी पर मुख्यालय से अनुपस्थिति के प्रत्येक दिन के लिए एक समान भत्ता है, जिसका उद्देश्य दौरे के दौरान ऐसी अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप सरकारी कर्मचारी द्वारा किए गए सामान्य दैनिक शुल्क को कवर करना है।

 परिवार का अर्थ सरकारी कर्मचारी की पत्नी या पति, जैसा भी मामला हो, वैध बच्चे और सौतेले बच्चे हैं जो सरकारी कर्मचारी के साथ रहते हैं और पूरी तरह से आश्रित हैं और इसमें माता-पिता, बहनें और नाबालिग भाई भी शामिल हैं, अगर वे साथ रहते हैं और पूरी तरह से सरकारी कर्मचारी पर निर्भर है, लेकिन इन नियमों के प्रयोजन के लिए एक से अधिक पत्नी शामिल नहीं है। एक दत्तक बच्चे को एक वैध बच्चा माना जाएगा, अगर सरकारी कर्मचारी के निजी कानून के तहत, गोद लेने को कानूनी तौर पर प्राकृतिक बच्चे की स्थिति के रूप में मान्यता दी जाती है। शासकीय सेवक की धर्मज पुत्रियाँ, सौतेली पुत्रियाँ एवं बहनें जिनका गौना या रुखसत हो चुकी हो, शासकीय सेवक पर पूर्णतः आश्रित नहीं मानी जायेंगी। पहली नियुक्ति में ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति शामिल है जो उस समय सरकार के अधीन कोई पद धारण नहीं कर रहा था, भले ही वह पहले ऐसे पद पर रहा हो।

माइलेज भत्ता-  माइलेज भत्ता यात्रा भत्ता का वह रूप है जिसकी गणना की गई दूरी पर की जाती है और जो किसी विशेष यात्रा की लागत को पूरा करने के लिए दी जाती है।

Travelling Allowance Rules-वि0ह0पु0 खंड-3 के अनुसार यात्रा भत्ता की गणना के प्रयोजन के लिए वेतन, जैसा कि मौलिक नियमों में परिभाषित किया गया है। सार्वजनिक वाहन का अर्थ है एक रेलवे ट्रेन या अन्य वाहन जो यात्रियों के परिवहन के लिए नियमित रूप से चलता है, लेकिन इसमें एक टैक्सी या अन्य वाहन शामिल नहीं है जो किसी विशेष यात्रा के लिए किराए पर लिया जाता है।

यात्रा भत्ता एक प्रतिपूरक भत्ता है [मौलिक नियम 9(5)] और, सभी प्रतिपूरक भत्तों की तरह, इसे इतना विनियमित किया जाना चाहिए कि यह प्राप्तकर्ता के लिए लाभ का एक स्रोत नहीं है (मूल नियम 44)। एक सरकारी कर्मचारी के यात्रा भत्ते के दावों को उस यात्रा के समय लागू नियमों द्वारा विनियमित किया जाना चाहिए जिसके संबंध में वे किए गए थे।