Promotion Forgo Rule 2 state UP & Uttarakhand

Promotion Forgo Rule 2 state UP & Uttarakhand

पदोन्नति का परित्याग नियमावली उत्तराखंड 2020

राज्याधीन सेवाओं के अन्तर्गत कार्मिकों द्वारा पदोन्नति का परित्याग (Forgo) करने पर नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जा सकेगी यह नियमावली राज्याधीन सेवाओं के अन्तर्गत नियुक्त कार्मिकों की नियमित पदोन्नति के सम्बन्ध में लागू होगी।:-

प्रथम बार पदोन्नति से परित्याग (Promotion Forgo Rule 2 state UP & Uttarakhand)
कार्यभार ग्रहण करने हेतु अधिकतम (1) राज्याधीन सेवाओं में विभागीय पदोन्नति समिति की संस्तुति पर नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा पदोन्नति आदेश में कार्यभार ग्रहण करने हेतु अधिकतम पन्द्रह दिन की अवधि निर्धारित की जायेगी, किन्तु सम्बन्धित कार्मिक द्वारा कार्यभार ग्रहण करने हतु लिखित अनुरोध पर अपरिहार्य परिस्थिति में नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा पन्द्रह दिन का अतिरिक्त समय दिया जा सकेगा,

(2) यदि किसी कार्मिक द्वारा निर्धारित अवधि के  भीतर पदोन्नति के पद पर कार्यभार ग्रहण न कर लिखित रूप में पदोन्नति का परित्याग (Forgo) प्रथम बार किया जाता है तो नियुक्ति प्राधिकारी ऐसे प्रकरणों में गुण-दोष के आधार पर निर्णय ले सकेंगे,

(3) यदि उसी चयन वर्ष में पुन विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक आहूत की जाती है तो नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा उपनियम (2) के अनुसार लिये गये निर्णय से विभागीय पदोन्नति समिति को अवगत कराया जायेगा और पदोन्नति का परित्याग (Forgo) करने वाले कार्मिक से कनिष्ठ (पदोन्नति  हेतु पात्र/उपयुक्त) कार्मिक की पदोन्नति की सस्तुति हेतु अनुरोध किया जा सकेगा,

नोशनल पदोन्नति का दावा नहीं परन्तु पदोन्नति का परित्याग (Forgo) करने वाला कार्मिक किसी नियम या शासनादेश में किसी बात के होते हुए भी कनिष्ठ की पदोन्नति की तिथि से नोशनल पदोन्नति का दावा नहीं कर सकेगा:
 विभागीय पदोन्नति प्रकिया प्रारम्भ होने से पूर्व ही आवेदन (4) यदि किसी कार्मिक के द्वारा विभागीय पदोन्नति प्रकिया प्रारम्भ होने से पूर्व ही सम्भावित चयन/पदोन्नति का परित्याग (Forgo) करने का लिखित अनुरोध किया जाता है तो ऐसा किया गया अनुरोध अनुशासनहीनता माना जायेगा एवं उत्तराखण्ड लोक सेवकों के लिए वार्षिक स्थानान्तरण अधिनियम 2017 की धारा 18 (2) के अन्तर्गत सम्भावित स्थानान्तरण से बचने का प्रयास तथा उसे कार्य के प्रति अभिरूचि न लेने आदि के आधार पर धारित पद पर ही उक्त अधिनियम की धारा 18(4) के अन्तर्गत प्रशासनिक आधार पर स्थानान्तरित किया जा सकेगा,
 द्वितीय बार परित्याग  (5) यदि किसी कार्मिक द्वारा उसे दी गयी पदोन्नति को द्वितीय बार परित्याग (Forgo) किये जाने का लिखित अनुरोध किया जाता है तो सम्बन्धित कार्मिक के अनुरोध पर नियुक्ति प्राधिकारी उप नियम (3) एवं (4) के अनुसार कार्यवाई कर सकेंगे:
दो से अधिक बार पदोन्नति का परित्याग (6) यदि किसी कार्मिक द्वारा दो से अधिक बार पदोन्नति का परित्याग (Forgo) किये जाने का लिखित अनुरोध किया जाता है तो उत्तराखण्ड सरकारी सेवक ज्येश्वता नियमावली, 2002 अथवा अन्य किसी नियम/शासनादेश में किसी बात के होते हुए भी ऐसे कार्मिक पदोन्नति के पद पर अपनी ज्येष्ठता खो देंगे तथा खोई हुई ज्येष्ठता को पुनः प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

अनुशासनिक कार्यवाही का किया जाना- इस नियमावली के उपबन्धों को लागू करने मे शिथिलता बरते जाने पर उत्तराखण्ड राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली, 2002 तथा उत्तराखण्ड सरुकारी सेवक (अनुशासन एव अपील) नियमावली, 2003 के उपबन्धों के अधीन अनुशासनात्मक कार्यवाही सस्थित की जा सकेगी।

आज्ञा से (राधा रतूड़ी) अपर मुख्य सचिव।

पदोन्नति का परित्याग नियमावली उत्तर प्रदेश  2022

उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अपने शासनदेश संख्या 14/2022/सैंतालीस-क-2022 दिनांक 06 october 2022 में व्यवस्था लागू की कि शासन के संज्ञान में आया है कि कतिपय सरकारी सेवकों द्वारा पदोन्नति से इन्कार (Forgo) करते हुए पदोन्नति के पद पर कार्यभार ग्रहण नहीं किया जाता है अथवा एक बार पदोन्नति से इन्कार (Forgo) किए जाने के पश्चात पुनः पदोन्नति की मांग की जाती है। इस प्रकार के प्रकरणों में शासन की कोई स्थापित व्यवस्था न होने के कारण नियुक्ति प्राधिकारियों को निर्णय लेने में असहजता की स्थिति का सामना करना पड़ता है। किसी भी सरकारी सेवक द्वारा पदोन्नति से इन्कार (Forgo) किए जाने के मामलों में, निम्नवत् व्यवस्था के अनुसार कार्यवाही सुनिधित की जायेगी:-

(क) पदोन्नति से इन्कार करने वाले संबंधित सरकारी सेवक से इस आशय का विधिवत् शपथ-पत्र प्राप्त कर लिया जाए कि वह भविष्य में पुनः कभी भी अपनी पदोन्नति की मांग नहीं करेगा।

(ख) एक बार पदोन्नति से इन्कार (Forgo) करने के पश्चात संबंधित सरकारी सेवक को भविष्य में होने वाली पदोन्नति हेतु पात्रता सूची में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

(ग) ऐसे सरकारी सेवक जिनके द्वारा पदोन्नति से इन्कार (Forgo) किया जाता है, के संबंध में नियुक्ति प्राधिकारी पदोन्नति से इन्कार करने के कारणों का विश्लेषण करते हुए स्वविवेक से यह निर्णय लेगे कि उन्हें भविष्य में, जनहित में, संवेदनशील/महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाए अथवा नहीं।

आज्ञा से (दुर्गा शंकर मिश्र) अपर मुख्य सचिव।

Types of Pension and Calculation

पुरानी पेंशन के प्रकार और आगणन
Types of Pension and Calculation

विभिन्न परिस्थितियों  में सेवा निवृत्त होने वाले शासकीय कर्मचारियों /अधिकारियों को निम्नांकित में से किसी एक प्रकार की पेंशन देय होती है:- 

 1- अधिवर्षता पें(Superannuation Pension) (अनुच्छेद 458, सी0एस0आर0)

प्रत्येक श्रेणी के राज्य कर्मचारियों के लिए सेवा की एक अधिवर्षता आयु निर्धारित होती है अर्थात एक निर्धारित आयु प्राप्त करने के उपरान्त ऐसे शासकीय सेवकों को सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। वर्तमान समय में सामान्यतः शासकीय सेवकों के सन्दर्भ में अधिवर्षता आयु 60 वर्ष है। इसके अतिरिक्त न्यायिक व कुछ अन्य सेवाओं के लिए अधिवर्षता आयु उपरोक्त से भिन्न हो सकती है, जो कि शासन  द्वारा निर्धारित की जाती है। प्रत्येक सरकारी सेवक जिस माह में 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत  हो जाता है उसे अधिवर्षता आयु पर सेवानिवृत कहते हैं। Civil Service Regulations  के Rule 458 के अनुसार अगर सरकारी सेवक की जन्मतिथि माह का प्रथम दिवस है तो सरकारी सेवक पिछले माह के अन्तिम दिवस को सेवानिवृत्त होगा। और किसी और तिथि के लिए माह की अन्तिम तिथि को सेवानिवृत्त होगा। अधिवर्षता पर 10 वर्ष की नियमित एवं अर्हकारी सेवा पूर्ण करने वाले सभी सेवकों को अधिवर्षता पेंशन की सुविधा अनुमन्य है। पेंशन अंतिम वेतन का आधी धनराशि होती है।  अधिवर्षता पेंcalculation  के लिए क्लिक करें

उत्तर प्रदेश पेंशन संबंधी शासनादेश, उत्तराखंड पेंशन संबंधी शासनादेश

पेंशन का आगणन और पेंशन आगणन की विधि-

माना किसी सेवानिवृत कार्मिक का अंतिम वेतन 100000 और महंगाई भत्ता 50 प्रतिशत है। उसकी कुल सेवा अवधि 34 वर्ष है। इसी उदाहरण में हम विभिन्न पेंशन आगणन करेंगे-

पेंशन अनुमन्यता हेतु अर्हकारी सेवा- 

1- अधिकतम 33 वर्ष की सेवा अर्थात 66 छमाही ही उपादान (Graituaty) के लिए जोड़ी जाती हैं। तीन माह से अधिक की अवधि पूर्ण छमाही जोड़ी जाती है।

2- 20 वर्ष की सेवा पर पूर्ण पेंशन देय होती है।

3- 10 वर्ष से कम की अर्हकरी सेवा होने पर पेंशन अनुमन्य नहीं होती है। तथा ऐसी स्थिति में पूर्व की भांति केवल सर्विस graitiuaty अनुमन्य होगी।

4- 20 वर्ष की सेवा पर पूर्ण पेंशन अनुमान्य होगी।

5- 20 वर्ष या इससे अधिक की सेवा पर अंतिम माह के अंतिम दिवस में आहृत वेतन या 10 माह की औसत परिलब्धियाँ जो भी कर्मचारी के लिए लाभकारी हो, के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन अनुमन्य होगी।

6- यदि अर्हकरी सेवा 10 वर्ष से अधिक किन्तु 20 वर्ष से कम है तो पेंशन की राशि आनुपातिक रूप से काम हो जाएगी परंतु यह राशि किसी भी दशा में रू0 9000/-प्रतिमाह से काम नहीं होगी।

6- प्राय: देखने में आता है कि किसी कार्मिक की मृत्यु की दशा में उस कार्मिक को मृत्यु की तिथि तक का वेतन आहरित किया जाता है। परंतु जानकारी के अभाव में की बार विभाग द्वारा अंतिम माह को आहरित वेतन पर ही उपदान आगणित कर दिया जाता है। जो की त्रुटिपूर्ण है। जबकि पूर्ण वेतन पर उपादान  आगणित किया जाना चाहिए।

(Graituaty) उपादान के लिए नियम-
  • अधिवर्षता पर उपादान आगणन सूत्र- वेतन+महंगाई भत्ताx कुल छमाही/4

50000+25000(50%)    75000 x 64/4=  1,200,000.00 

(Commutation) राशिकरण  के लिए नियम-

2- सेवानिवृत्तिक पेंशन (Retiring Pension):

(मूल नियम – 56, स्वैच्छिक अथवा अनिवार्य सेवानिवृत्ति की स्थिति में)

वित्तीय हस्त पुस्तिका खण्ड 2, से 4 के मूल नियम 56 के अनुसार किसी सरकारी सेवक द्वारा अधिवर्षता आयु प्राप्त करने के पूर्व यदि उसे अनिवार्यतः सेवानिवृत्त कर दिया जाता है अथवा स्वयं उसके द्वारा स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति प्राप्त की जाती है तो ऐसे सरकारी सेवकों को देय पेंशन, सेवानिवृत्त पेंशन के नाम से जानी जाती है।

नोट- पेंशन का आगणन अधिवर्षता पेंशन की भांति की जाती है। 

(अ) अनिवार्य सेवानिवृत्ति (Compulsory Retirement) : नियमतः नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा किसी ऐसे सेवक जिसने 50 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो, तीन माह का नोटिस अथवा उसके बदले में वेतन तथा भत्ता देकर जनहित में सेवानिवृत्त किया जा सकता है। इस प्रकार की सेवानिवृत्ति को अनिवार्य सेवानिवृत्ति कहा जाता है। मूल नियम 56 ई के अनुसार प्रत्येक सरकारी सेवक को सेवानिवृत्तिक पेंशन एवं अन्य लाभ देय होंगे। उल्लेखनीय है कि शासनादेश सं0- सा-2-514/दस दिनांक 19.07.1995 द्वारा शासन ने यह निदेश जारी किया है कि अनिवार्यतः सेवानिवृत्त किये जाने की दशा में तीन माह के नोटिस के स्थान पर तीन माह के भत्ते देकर तुरन्त सेवानिवृत्त कर देना चाहिये।

(ब)  स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ( Voluntary Retirement) : कोई सरकारी सेवक जिसने 45 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली हो या जिसकी 20 वर्ष की अर्हकारी सेवा पूर्ण हो गयी हो, नियुक्ति प्राधिकारी को तीन माह की नोटिस देकर स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो सकता है। परन्तु प्रतिबन्ध यह है कि ऐसे सरकारी सेवक द्वारा जिनके विरूद्ध अनुशासनिक कार्यवाही विचाराधीन या आसन्न हो, दी गयी नोटिस तभी प्रभावी होती है, जब उसे नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा स्वीकार कर लिया जाये। यदि सेवानिवृत्ति तत्काल वांछित हो, स्वेच्छा से सेवानिवृत्त के मामले में तीन माह के नोटिस की शर्त नियुक्ति प्राधिकारी शिथिल कर सकता है। स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने के लिए सरकारी सेवक द्वारा दी गयी नोटिस नियुक्ति प्राधिकारी की अनुज्ञा के बिना वापस नहीं लिया जा सकता है। स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी सेवक की सेवा अवधि के आगणन में 5 वर्ष या अधिवर्षता आयु प्राप्त होने पर सेवानिवृत्त होने में जितना अवधि शेष रहती हो, इन दोनों अवधियों में से जो भी कम हो, उस अवधि का अतिरिक्त लाभ अनुमन्य होता है, परन्तु यह लाभ उस सरकारी सेवक को प्रदान नहीं किया जा सकता, जिसकी सत्यनिष्ठा संदिग्ध हो। छठे वेतन आयोग की संस्तुतियां लागू होने के उपरान्त 33 वर्ष की अर्हकारी सेवा के स्थान पर 20 वर्ष की अर्हकारी सेवा पर पूर्ण पेंशन दिये जाने का प्राविधान करने के परिणामस्वरूप दिनांक 01-01-2006 से उक्त अतिरिक्त लाभ की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है।

 3-  पारिवारिक पेंशन  (Family Pension) (नयी पारिवारिक पेंशन  योजना, 1965)

किसी कार्मिक की मृत्यु उसके सेवाकाल में अथवा सेवानिवृत्ति के उपरान्त हो जाने पर  उसके द्वारा नामित व्यक्ति/परिवार के सदस्यों को मिलने वाली पेंशन पारिवारिक पेंशन के नाम से जानी जाती है। सेवारत मृत्यु हो जाने पर पारिवारिक पेंशन पाने के लिए कोई सेवा अवधि अनिवार्य नहीं है, लेकिन शर्त यह है कि सरकारी सेवक ने नियमानुसार चिकित्सा परीक्षा करवाई हो और सरकारी सेवा के लिए योग्य पाया गया हो। सेवानिवृत्ति के उपरान्त उन्हीं सरकारी सेवकों के मामले में पारिवारिक पेंशन देय है, जिन सरकारी सेवक को पेंशन अनुमन्य रही हो।

पारिवारिक पेंशन के रूप में देय राशि – मृतक कार्मिक की मृत्यु के 10 वर्ष तक पारिवारिक पेन्शनर को मूल वेतन की आधी धनराशि पेंशन के रूप में तथा उसके बाद मूल वेतन का 30% राशि पारिवारिक पेंशन के रूप में देय होती है।

 4-  असाधारण पेंशन  (Extraordinary Pension ) :

Uttar Pradesh Civil Service  (Extraordinary Pension) नियमावली, उसकी प्रथम संशोधन नियमावली 1981 व द्वितीय संशोधन नियमावली 1983 तथा शासनादेश संख्या सा-3/1340/दस-916-88 दिनांक 19-8-1988 व शासनादेश संख्या सा-3-1145/दस-916/88 दिनांक 17-08-1993 के अनुसार जब कोई कर्मचारी अपने पद के जोखिम के परिणामस्वरूप मारा जाता है या लगी चोट से मर जाता है तो उसके परिवार को असाधारण पेंशन, तात्कालिक सहायता व अनुग्रह धनराशि देय होती है। मृत्यु के प्रकरणों के अतिरिक्त उक्त शासनादेश दिनांक 19-08-1998 व शासनादेश दिनांक 17-08-1993 के अनुसार कर्तव्य पालन के दौरान जो सेवक विशेष जोखिम की परिस्थितियों में गम्भीर रूप से घायल हो जाने के कारण सेवा में बनाये रखने के योग्य न रह जाय तो ऐसे सेवकों को भी मृत्यु के प्रकरणों की भांति असाधारण पेंशन, तात्कालिक सहायता व अनुग्रह धनराशि देय होती है। असाधारण पेंशन की स्वीकृति महालेखाकार की संस्तुति पर शासन द्वारा प्रदान की जाती है।

देय राशि- मृतक कार्मिक की उस तिथि तक जिस तिथि तक उसके जीवित रहते हुए उसे अधिवर्षता पर पेंशन स्वीकृत की जाती उस तिथि तक नॉमिनी को पूर्ण पेंशन दे होगी। उसके बाद पारिवारिक पेंशन की भांति गणना की जाएगी। 

5    एक्सग्रेसिया पेंशन (ex-gratia Pension) :

एक्सग्रेसिया पेंशन उन सेवकों को देय होती है जो सेवा के दौरान अन्धे या विकलांग हो जाय और जिन्हें नियमों के अन्तर्गत कोई पेंशन देय न हो। शासनादेश संख्या सा-2-574/दस-942/75 दिनांक 19- 06-1976 के अनुसार यह योजना दिनांक 19-06-1976 से लागू है।

जिन सरकारी सेवकों की मृत्यु सरकारी कार्य के दायित्वों के निर्वहन के फलस्वरुप हो जाती है उन्हें राज्य सरकार द्वारा एक्सग्रेसिया की धनराशि का एकमुष्त भुगतान किया जाता है –

(क)- यदि कर्तव्यपालन की अवधि में दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है।

(ख)-कर्तव्यपालन के समय आतंकवादी/अराजकतत्वों की गतिविधियों में हुयी हिंसा के फलस्वरुप मृत्यु होने पर।

(ग)-देश की सीमा पर अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध या सीमा पर छुटपुट घटनाओं अथवा लड़ाकू/ आतंकवादियों अथवा अतिवादियों आदि की गतिविधियों के फलस्वरुप मृत्यु होने पर।

(घ)-अति दुर्लभ पहाड़ी ऊँचाइयों/दुर्लभ सीमा अथवा प्राकृतिक विपदाओं अथवा अति खराब मौसम में कर्तव्यपालन करते हुए मृत्यु होने पर।

पेंशन के रूप में गणना उसी प्रकार की जाती है जिस प्रकार सरकारी कार्मिक की मृत्यु की दशा में स्वीकृत जाती। अर्थात पारिवारिक पेंशन के समान पेंशन एवं अन्य लाभ दे होंगे। 

6    अशक्तता पेंशन (Invalid Pension)  (अनुच्छेद 441-447, सी0एस0आर0)

अशक्तता पेंशन Civil Service Regulations  के Rule 441 से 457 में उल्लिखित व्यवस्था के अनुसार शारीरिक अथवा मानसिक अशक्तता के परिणामस्वरूप स्थायी रूप से अशक्त हो जाने की दशा में संबंधित सरकारी सेवक द्वारा सक्षम चिकित्सा अधिकारी से निर्धारित प्रारूप में अशक्तता चिकित्सा प्रमाणपत्र प्राप्त कर नियुक्ति प्राधिकारी को प्रस्तुत किये जाने पर अशक्तता पेंशन अनुमन्य होती है तथा उसे अशक्तता प्रमाणपत्र जारी होने के दिनांक से सेवानिवृत्त माना जायेगा। प्रमाण-पत्र में स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया जाना चाहिए कि उसकी अशक्तता/अयोग्यता सरकारी सेवक की अनियमित अथवा असंयमित आदतों के परिणामस्वरूप नहीं हुई है। यदि किसी सेवक को अवकाश स्वीकृत किया जा चुका है तो उसकी समाप्ति की तिथि से उसे अशक्तता पेंशन पर सेवानिवृत्त किया जायेगा। इसके अतिरिक्त सहायक नियम- 100, वि0 नि0 स0, खण्ड-2 भाग 2 – 4 के अन्तर्गत अशक्त घोशित कर्मचारी को 6 माह तक का अवकाश यदि देय हो, विषेश रूप से स्वीकृत किया जा सकता है। अशक्तता की दशा में सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी कर्मचारी को अनुमन्य पेंशन धनराशि किसी भी दशा में उस धनराशि से कम नहीं होगी जो उसके परिवार को उक्त तिथि पर उसकी मृत्यु होने की दशा  में नयी पारिवारिक पेंशन योजना के अधीन उस समय पारिवारिक पेंशन के रूप में देय होगी। शासनादेश  संख्या- सा-3-1152/दस-915/89, दिनांक 01 जुलाई, 1989 के अनुसार अस्थाई सरकारी सेवक भी अशक्तता पेंशन हेतु अर्ह हैं।

7   प्रतिकर/अनुपूरक पेंशन (Compensation Pension)  (अनुच्छेद 426, सी0एस0आर0)

Civil Service Regulations  के Rule 426 के अनुसार किसी स्थायी पद के समाप्त होने के फलस्वरूप सेवामुक्त किये गये स्थायी सरकारी सेवक को यदि समान स्तर के किसी अन्य पद पर नियुक्त न किया जाये, तो उसे यह विकल्प उपलब्ध रहता है कि उसके द्वारा की गयी अर्हकारी सेवा के लिए नियमानुसार अनुमन्य पेंशन को प्रतिकर पेंशन के रूप में स्वीकृत किया जाए अथवा किसी अन्य पद, चाहे वह निम्नतर स्तर का भी हो, पर नियुक्ति के प्रस्ताव को स्वीकार कर ले तथा पूर्व पद पर की गयी सेवा अवधि की गणना पेंशन हेतु की जाए। शासनादेश संख्या- सा-3-1713/दस-87-933/89, दिनांक 28 जुलाई, 1989 के संलग्नक-1-सी  पेंशन स्वीकर्ता अधिकारियों के लिए दिशा निर्देश  के बिन्दु 11(2) के अनुसार प्रतिकर पेंशन हेतु अस्थाई सरकारी सेवक भी अर्ह हैं।

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पुरानी पेंशन योजना

पुरानी पेंशन योजना

पुरानी  पेंशन योजना से सम्बन्धित नियम उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस रेग्युलेशन  (सी0एस0आर0) में प्राविधानित हैं। दिनांक 01.04.1961 से पूर्व पेंशन सम्बन्धी शासन के कोई पृथक नियम नहीं थे एवं समस्त शासकीय सेवकों के पेंशन सम्बन्धी मामले सी0एस0आर0 में निहित नियमों के अन्तर्गत देखे जाते थे। उक्त नियमों में किसी कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु हो जाने पर, पारिवारिक पेंशन का कोई प्राविधान नहीं था।    पुरानी  पेंशन योजना के अंतर्गत दूसरे शब्दों में कहें तो,  सेवा की एक निश्चित अवधि पूर्ण करने के उपरान्त ही पेंशन देय होती थी। उक्त नियमों के अन्तर्गत कर्मचारी द्वारा सी0पी0फण्ड के खाते में नियमित रूप से धनराषि जमा की जाती थी एवं उसके खाते में सेवानिवृत्त होने पर सरकार उक्त खाते में अपना हिस्सा जमा करने के पश्चात् कर्मचारी की पेंशन निर्धारित करती थी। उक्त विधि काफी जटिल थी अतः सामान्यतया पेंशन निर्धारण में काफी विलम्ब हो जाता था। दिनांक 01.04.1961 से सरकारी विज्ञप्ति सं0- सा-3-749/दस दिनांक 29.03.1962 द्वारा    पुरानी  पेंशन योजना के  नियमों एवं निर्धारण विधि को सरलीकृत करते हुए पेंशन नियमों का सृजन किया गया। यह नियम उत्तर प्रदेश लिबरलाइज्ड पेंशन रूल्स 1961, उत्तर प्रदेश रिटायरमेन्ट बेनिफिट्स रूल्स 1961, से जाना जाता है।

यह अनुभव किया गया कि उक्त “उत्तर प्रदेश रिटायरमेन्ट बेनिफिट्स रूल्स 1961“ में निहित नियमों के अन्तर्गत, किसी कर्मचारी/अधिकारी की, सेवाकाल में अथवा सेवानिवृत्ति के उपरान्त मृत्यु हो जाने पर मिलने वाली पारिवारिक पेंशन का लाभ अत्यन्त सीमित है। अतः शासन द्वारा 01.04.1965 से नयी पारिवारिक पेंशन योजना 1965 बनाते हुए पारिवारिक पेंशन के लाभों का विस्तार किया गया। (विज्ञप्ति सं0- सा-31769/दस दिनांक 24.08.1966)

उपरोक्त लाभकारी नियम बनाकर    पुरानी  पेंशन योजना के तहत पेंशन /पारिवारिक पेंशन सम्बन्धी सुविधाओं को और अधिक उदार एवं लाभप्रद बनाया गया है। साथ ही सरकार की सदैव वह मंशा रही है कि समस्त सरकारी सेवकों को उनके सेवानिवृत्त होने पर यथाशीघ्र लाभों का भुगतान प्राप्त हो जाय। इसी आशय से उ0प्र0 शासन द्वारा समय-समय पर विभिन्न शासनादेश संख्या सा-2085/दस-907-76 दिनांक 13 दिसम्बर 1977, शासनादेश संख्या सा-3-1713/दस-933-89 दिनांक 28 जुलाई, 1989 द्वारा पेंशन प्रपत्रों का सरलीकरण कर ‘‘एकीकृत पेंशन प्रपत्र‘‘ निर्धारित किया गया व पेंशन प्रपत्रों की तैयारी हेतु एक 24 माह की समय-सारणी भी निर्धारित कर दी गयी। दिनांक 2 नवम्बर 1995 से उत्तर प्रदेश पेंशन मामलों की (प्रस्तुतीकरण, निस्तारण और विलम्ब का परिर्वजन) नियमावली 1995 भी ससमय सेवानैवृत्तिक लाभों की स्वीकृति एवं भुगतान सुनिश्चित करने हेतु लागू की गयी। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन के उपरान्त नवगठित राज्य उत्तराखण्ड में अधिसूचना संख्या-1033/वि0अनु0-4/003 दिनॉक 10 नवम्बर, 2003 द्वारा पुनः उत्तराखण्ड, प्रस्तुतीकरण, निस्तारण और विलम्ब का परिवर्जन नियमावली 2003 लागू की गयी।

पुरानी  पेंशन योजना की  अनुमन्यता:-

शासन का अपने कर्मचारियों/अधिकारियों को पेंशन देने का प्रमुख उद्देश्य है कि राजकीय सेवा से पृथक होने के उपरान्त उन्हें अथवा उनके परिवार को जीवन यापन में आर्थिक सहयोग देना। कोई कर्मचारी शासकीय सेवा से निम्नांकित प्रकार से पृथक हो सकता है अथवा किया जा सकता हैः-

1-            अधिवर्षता आयु पूर्ण करने पर।

2-            अनिवार्य सेवानिवृत्ति।

3-            निर्धारित सेवाकाल पूर्ण करने के उपरान्त।

4-            शारीरिक अथवा मानसिक अपंगता के कारण।

5-             व्यक्तिगत कारणवश स्वेच्छा से।

6-             सेवाकाल में मृत्यु हो जाने के कारण।

7-            किसी स्थाई पद जिस पर वह कार्यरत है, के समाप्त हो जाने पर।

पुरानी  पेंशन योजना में इन विभिन्न परिस्थितियों में दी जाने वाली पेंशन की धनराशि व आंगणन की विधि भिन्न-भिन्न है। इसके अतिरिक्त नीचे लिखी परिस्थितियों में सरकारी सेवक पेंशन के लाभ से वंचित रहता है।

1-            यदि वह सेवा जो वह कर रहा है, वह पेंशनेबल न हो, उस दशा में पेंशन नहीं मिलती है।

2-            यदि किसी सरकारी सेवक को किसी दण्डनीय अपराध में दोषी पाया गया हो।

3-            यदि किसी सरकारी सेवक द्वारा दैनिक भुगतान (daily wages) के आधार पर सेवा की गयी हो।

4-            यदि कोई कर्मचारी को तदर्थ सेवा के रूप में कार्य लिया गया हो। तथा किसी भी पद पर सेवानिवृत्ति तक स्थाई न किया गया हो। उल्लेखनीय है, कि शासनादेश सं0-सा-3-1152/दस दिनांक 01.07.1989 द्वारा                   पूर्णतया अस्थाई रूप से सेवानिवृत्त हो जाने वाले कर्मचारी को भी पेंशन और ग्रेच्यूटी का लाभ दिनांक 01.06.1989 से प्रदान कर दिये गये हैं, यदि उसने कम से कम 10 वर्श की सेवा की हो। तात्पर्य यह है कि                     कोई कर्मचारी यदि किसी भी पद पर स्थायी न हुआ हो तो भी उसे पेंशन स्वीकृत की जा सकती है।

5-            यदि सम्बन्धित कर्मचारी किसी आरोप से विभागीय कार्यवाही के उपरान्त सेवा से निष्काषित कर दिया गया हो। अर्थात् डिसमिस सा रिमूव कर दिया गया हो।

6-            यदि संबंधित कर्मचारी द्वारा नियमानुसार न्यूनतम निर्धारित सेवा अवधि 10 वर्ष पूर्ण न की गयी हो।

7-            यदि कर्मचारी द्वारा निर्धारित अवधि से पूर्व सेवा से त्यागपत्र देकर स्वयं को सेवा से पृथक कर लिया हो।