पुरानी पेंशन योजना
पुरानी पेंशन योजना से सम्बन्धित नियम उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस रेग्युलेशन (सी0एस0आर0) में प्राविधानित हैं। दिनांक 01.04.1961 से पूर्व पेंशन सम्बन्धी शासन के कोई पृथक नियम नहीं थे एवं समस्त शासकीय सेवकों के पेंशन सम्बन्धी मामले सी0एस0आर0 में निहित नियमों के अन्तर्गत देखे जाते थे। उक्त नियमों में किसी कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु हो जाने पर, पारिवारिक पेंशन का कोई प्राविधान नहीं था। पुरानी पेंशन योजना के अंतर्गत दूसरे शब्दों में कहें तो, सेवा की एक निश्चित अवधि पूर्ण करने के उपरान्त ही पेंशन देय होती थी। उक्त नियमों के अन्तर्गत कर्मचारी द्वारा सी0पी0फण्ड के खाते में नियमित रूप से धनराषि जमा की जाती थी एवं उसके खाते में सेवानिवृत्त होने पर सरकार उक्त खाते में अपना हिस्सा जमा करने के पश्चात् कर्मचारी की पेंशन निर्धारित करती थी। उक्त विधि काफी जटिल थी अतः सामान्यतया पेंशन निर्धारण में काफी विलम्ब हो जाता था। दिनांक 01.04.1961 से सरकारी विज्ञप्ति सं0- सा-3-749/दस दिनांक 29.03.1962 द्वारा पुरानी पेंशन योजना के नियमों एवं निर्धारण विधि को सरलीकृत करते हुए पेंशन नियमों का सृजन किया गया। यह नियम उत्तर प्रदेश लिबरलाइज्ड पेंशन रूल्स 1961, उत्तर प्रदेश रिटायरमेन्ट बेनिफिट्स रूल्स 1961, से जाना जाता है।
यह अनुभव किया गया कि उक्त “उत्तर प्रदेश रिटायरमेन्ट बेनिफिट्स रूल्स 1961“ में निहित नियमों के अन्तर्गत, किसी कर्मचारी/अधिकारी की, सेवाकाल में अथवा सेवानिवृत्ति के उपरान्त मृत्यु हो जाने पर मिलने वाली पारिवारिक पेंशन का लाभ अत्यन्त सीमित है। अतः शासन द्वारा 01.04.1965 से नयी पारिवारिक पेंशन योजना 1965 बनाते हुए पारिवारिक पेंशन के लाभों का विस्तार किया गया। (विज्ञप्ति सं0- सा-31769/दस दिनांक 24.08.1966)
उपरोक्त लाभकारी नियम बनाकर पुरानी पेंशन योजना के तहत पेंशन /पारिवारिक पेंशन सम्बन्धी सुविधाओं को और अधिक उदार एवं लाभप्रद बनाया गया है। साथ ही सरकार की सदैव वह मंशा रही है कि समस्त सरकारी सेवकों को उनके सेवानिवृत्त होने पर यथाशीघ्र लाभों का भुगतान प्राप्त हो जाय। इसी आशय से उ0प्र0 शासन द्वारा समय-समय पर विभिन्न शासनादेश संख्या सा-2085/दस-907-76 दिनांक 13 दिसम्बर 1977, शासनादेश संख्या सा-3-1713/दस-933-89 दिनांक 28 जुलाई, 1989 द्वारा पेंशन प्रपत्रों का सरलीकरण कर ‘‘एकीकृत पेंशन प्रपत्र‘‘ निर्धारित किया गया व पेंशन प्रपत्रों की तैयारी हेतु एक 24 माह की समय-सारणी भी निर्धारित कर दी गयी। दिनांक 2 नवम्बर 1995 से उत्तर प्रदेश पेंशन मामलों की (प्रस्तुतीकरण, निस्तारण और विलम्ब का परिर्वजन) नियमावली 1995 भी ससमय सेवानैवृत्तिक लाभों की स्वीकृति एवं भुगतान सुनिश्चित करने हेतु लागू की गयी। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन के उपरान्त नवगठित राज्य उत्तराखण्ड में अधिसूचना संख्या-1033/वि0अनु0-4/003 दिनॉक 10 नवम्बर, 2003 द्वारा पुनः उत्तराखण्ड, प्रस्तुतीकरण, निस्तारण और विलम्ब का परिवर्जन नियमावली 2003 लागू की गयी।
पुरानी पेंशन योजना की अनुमन्यता:-
शासन का अपने कर्मचारियों/अधिकारियों को पेंशन देने का प्रमुख उद्देश्य है कि राजकीय सेवा से पृथक होने के उपरान्त उन्हें अथवा उनके परिवार को जीवन यापन में आर्थिक सहयोग देना। कोई कर्मचारी शासकीय सेवा से निम्नांकित प्रकार से पृथक हो सकता है अथवा किया जा सकता हैः-
1- अधिवर्षता आयु पूर्ण करने पर।
2- अनिवार्य सेवानिवृत्ति।
3- निर्धारित सेवाकाल पूर्ण करने के उपरान्त।
4- शारीरिक अथवा मानसिक अपंगता के कारण।
5- व्यक्तिगत कारणवश स्वेच्छा से।
6- सेवाकाल में मृत्यु हो जाने के कारण।
7- किसी स्थाई पद जिस पर वह कार्यरत है, के समाप्त हो जाने पर।
पुरानी पेंशन योजना में इन विभिन्न परिस्थितियों में दी जाने वाली पेंशन की धनराशि व आंगणन की विधि भिन्न-भिन्न है। इसके अतिरिक्त नीचे लिखी परिस्थितियों में सरकारी सेवक पेंशन के लाभ से वंचित रहता है।
1- यदि वह सेवा जो वह कर रहा है, वह पेंशनेबल न हो, उस दशा में पेंशन नहीं मिलती है।
2- यदि किसी सरकारी सेवक को किसी दण्डनीय अपराध में दोषी पाया गया हो।
3- यदि किसी सरकारी सेवक द्वारा दैनिक भुगतान (daily wages) के आधार पर सेवा की गयी हो।
4- यदि कोई कर्मचारी को तदर्थ सेवा के रूप में कार्य लिया गया हो। तथा किसी भी पद पर सेवानिवृत्ति तक स्थाई न किया गया हो। उल्लेखनीय है, कि शासनादेश सं0-सा-3-1152/दस दिनांक 01.07.1989 द्वारा पूर्णतया अस्थाई रूप से सेवानिवृत्त हो जाने वाले कर्मचारी को भी पेंशन और ग्रेच्यूटी का लाभ दिनांक 01.06.1989 से प्रदान कर दिये गये हैं, यदि उसने कम से कम 10 वर्श की सेवा की हो। तात्पर्य यह है कि कोई कर्मचारी यदि किसी भी पद पर स्थायी न हुआ हो तो भी उसे पेंशन स्वीकृत की जा सकती है।
5- यदि सम्बन्धित कर्मचारी किसी आरोप से विभागीय कार्यवाही के उपरान्त सेवा से निष्काषित कर दिया गया हो। अर्थात् डिसमिस सा रिमूव कर दिया गया हो।
6- यदि संबंधित कर्मचारी द्वारा नियमानुसार न्यूनतम निर्धारित सेवा अवधि 10 वर्ष पूर्ण न की गयी हो।
7- यदि कर्मचारी द्वारा निर्धारित अवधि से पूर्व सेवा से त्यागपत्र देकर स्वयं को सेवा से पृथक कर लिया हो।